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मुरादाबाद: कोरोना से निपटने के लिए भले ही देशभर में लॉक डाउन किया गया हो, लेकिन इस महामारी से इतर मजदूरों की दुर्दशा को लेकर ऐसी तस्वीरें सामने आ रहीं हैं। जिसने हमारे विकास के दावों की पोल खोलने के साथ ही इंसानियत को भी शर्मसार कर दिया है। जी हां जब देश भर में मजदूरों के पैदल चलते और मरने की तमाम तस्वीरें सामने आ रहीं हैं तो वहीँ मुरादाबाद में एक पत्रकार की आंखों देखी स्टोरी आपकी आंखों के आंसू भी सुखा देगी। जी खुद सुनिए स्थानीय पत्रकार फरीद शम्शी की जुबानी।

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फरीद शम्सी ने सोशल मीडिया पर अपना दर्द साझा करते हुए लिखा कि क्या आपमें से किसी पत्रकार भाई ने इतना बड़ा दर्द देखा है। आज अपने ऊपर मुझे बहुत गुस्सा आया, मैं एक पत्रकार होकर भी एक बेबस इंसान की मदद नहीं कर पाया।

मैं एक स्टोरी कवर करने मूंढापांडे थाना क्षेत्र से पास हो रहे प्रवासी कामगारों पर स्टोरी कवर करने गया था। मैनें देखा पीलीभीत के बीसलपुर के रहने वाले एक परिवार अपने 4 साल के बच्चे को कंधे पर सुलाने वाले अंदाज़ में तेज़ी से लेकर जा रहे थे। मैंने उन्हें रोककर बात करनी चाही, तो उस शख्स ने मेरे आगे अपने हाथ जोड़ दिए, और मुझे कहने लगा बाबू जी हमारी फ़ोटो मत लो। मैंने उनसे पूछा बाबा क्या हो गया, तब उस शख्स ने रोते-रोते जो बताया उससे में शर्म से पानी हो गया। उस शख्स ने बताया कि वो अंबाला से आ रहा है। कल शाम (गुरूवार) रास्ते मे उसका 4 साल का बीमार बच्चा इस दुनिया से चला गया। रास्ते में उसे एक भले आदमी ने 500 रुपये दिए खाने का सामान दिया और मुरादाबाद के कांठ तक आ रहे एक वाहन में पुलिस की मदद से बैठा दिया। उस भले आदमी ने कहा कि अगर इस बच्चे की मौत की ख़बर किसी को लग गई तो इसका पोस्टमार्टम होगा। तुम्हे भी 14 दिन के लिये बंद कर देंगे। इसीलिये बाबू जी बस सुबह से लगातार बच्चे के शव को कंधे पर डालकर जल्दी से जल्दी अपने गांव पहुंचना चाहतें है। अगर बाबू जी आपने हमारी फ़ोटो ले ली तो हम पकड़े जाएंगे।
मजबूर हो गया था पिता
ये सब सुनकर मैं अपने आंसू रोक नही पाया, और उस वक़्त की बात तो रहने दीजिए। मैं तो अभी ये सब लिखते हुये अपने आंसू नही रोक पा रहा हूँ। एक मजबूर बाप अपने 4 साल के बेटे की स्वाभाविक मौत की ख़बर भी छुपाने पर मजबूर है। इस दर्द को जब में इतना महसूस कर रहा हूँ तो कल रात से अपने मासूम बेटे का शव कंधे पर डालकर लगातार बिना रुके गर्मी में चल रहा है, उसका किया हाल होगा।

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ऐसे की मदद
ये दर्द फरीद ने अपने वाल पर जब साझा किया तो हर कोई सिहर गया, बाद में जब इस खबर को फालोअप करने की कोशिश की गयी तो वो बेबस मजदूर इसलिए बच्चे की लाश कंधे पर ढोकर पैदल जा रहा था,क्यूंकि बच्चे की दादी उसका मुंह देखना चाहती थी। बाद पत्रकार फरीद के अनुरोध पर एक समाजसेवी ने नाम न छापने की शर्त पर एक प्राइवेट गाड़ी से उक्त मजदूर परिवार को उनके गांव भिजवाया।

लगातार आ रहीं ऐसी तस्वीरें
यहां बता दें कि लॉक डाउन में मजदूरों की दिल दहला देने वाली ये कोई पहली तस्वीर नहीं है, कुछ यही तस्वीर आगरा से भी आई थी, जिसमें एक मां सूटकेस को रस्सी से खींच रही है और उसका बेटा उस पर सोता हुआ जा रहा है। वहीँ मध्य प्रदेश के इंदौर से भी एक व्यक्ति बैल के साथ जुतकर अपने परिवार को ढोकर ला रहा था।

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