FCN24News, ब्यूरो नई दिल्ली:

अगर कोई शख्स आपको जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी (जीपीए) के जरिए अपनी प्रॉपर्टी बेच रहा है तो तुरंत उस ऑफर को मना कर दें. 2011 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक जीपीए के जरिए प्रॉपर्टी ट्रांसफर वैध नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश को समझने से पहले यह जानिए कि जीपीए होता क्या है. 

क्या है पावर ऑफ अटॉर्नी और उसके प्रकार: अगर आप किसी को पावर ऑफ अटॉर्नी (PoA) देते हैं तो दूसरे शख्स को आपकी ओर से कुछ खास कानूनी और फाइनेंशियल बिजनेस के फैसले लेने का अधिकार मिल जाता है. प्रवासी भारतीयों के बीच यह चीज आम है. उदाहरण के तौर पर वह किसी विश्वासपात्र को पीओए दे देते हैं, जो मूल देश में उनका बिजनेस संभालते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि वह जल्दी-जल्दी ट्रैवल नहीं कर सकते. देश में भी, लोग अपना एक पीओए नियुक्त करते हैं, जो उनके प्रतिनिधि होते हैं. जो लोग उम्र या किसी बीमारी के कारण हर जगह खुद मौजूद नहीं हो सकते, वे ऐसा करते हैं. अगर किसी शख्स के पास कई संपत्तियां हैं, जैसे बिजनेसमैन या राजनेता और उनके पास अपने बिल तक भरने का वक्त नहीं है. ऐसे लोग किसी शख्स को पीओए बना देते हैं. यह किसी जरूरत से कम नहीं है.
 
सुप्रीम कोर्ट के वकील हिमांशु यादव ने कहा, ''पावर ऑफ अटॉर्नी एक कानूनी दस्तावेज है, जिससे लोगों को बिजनेस करने में आसानी होती है, जो किन्हीं कारणों से ऐसा नहीं कर पाते.'' पीओए दो प्रकार के होते हैं- जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी और स्पेशल पावर ऑफ अटॉर्नी. लेकिन दोनों में फर्क क्या है?
 
यादव कहते हैं, "जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी में प्रतिनिधि को ज्यादा अधिकार मिलते हैं. वहीं स्पेशल पावर ऑफ अटॉर्नी में प्रतिनिधि अपने मालिक की ओर से कुछ खास फैसले ही ले पाता है." अगर आप किसी को जीपीए देते हैं तो वह आपकी ओर से जरूरी बिल भर सकता है, किराया ले सकता है और झगड़ों को निपटाने का काम कर सकता है. साथ ही आपके प्रतिनिधि के तौर पर बैंक से जुड़े काम कर सकता है.''
 
हरियाणा एंड पंजाब हाई कोर्ट के वरिष्ठ वकील ब्रजेश मिश्रा के मुताबिक, ''एसपीए के जरिए, मालिक अटॉर्नी पर कुछ खास अधिकार ही देता है. उदाहरण के तौर पर, अगर किसी केस के लिए अपना प्रतिनिधि नियुक्त करते हैं तो वह सिर्फ उसी मामले पर आपको रिप्रेजेंट करेगा. '' 
 
ध्यान रहे कि पीओए को कानूनी दर्जा देने के लिए उसे सब-रजिस्ट्रार दफ्तर में रजिस्टर कराना पड़ता है. एक और बात, पीओए सिर्फ मालिक के जिंदा रहने तक मान्य है. जिंदा रहते हुए वह कभी भी पीओए को वापस ले सकता है. वहीं एसपीए किसी काम के पूरे होने के बाद खुद ही खत्म हो जाती है. 
 
पीओए और रियल एस्टेट: अब तक आपको इतना तो पता चल गया होगा कि पीओए का इस्तेमाल प्रॉपर्टी ट्रांसफर के लिए नहीं किया जा सकता. इसे वैध नहीं माना जाएगा. लेकिन फिर भी भारतीय शहरों में जीपीए के जरिए प्रॉपर्टी बेचना आम चीज है क्योंकि यह खरीददार और बेचने वाले को कई मौद्रिक फायदे देता है. 
 
आमतौर पर, प्रॉपर्टी ट्रांसफर के लिए बैनामा का इस्तेमाल होता है, जिस पर खरीददार को स्टांप ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन चार्ज देना पड़ता है. वहीं लेनदेन पर बेचने वाले को कैपिटल गेन्स टैक्स का भार भी उठाना पड़ता है. वहीं जीपीए से प्रॉपर्टी ट्रांसफर करने पर ये चार्ज नहीं देने पड़ते. 
 
मिश्रा ने कहा, ''बेचने वाले के नजरिए से देखें तो अगर उसके पास क्लियर प्रॉपर्टी टाइटल नहीं है तब भी वह जीपीए के जरिए लेनदेन कर सकता है. वहीं खरीददार को मार्केट प्राइस से कम दर पर प्रॉपर्टी मिल जाती है. वे किसी प्रॉपर्टी पर कब्जा भी कर सकते हैं, जिसके लिए उन्हें इस तरीके की जरूरत नहीं पड़ेगी.'' मिश्रा ने कहा, कानूनी तौर पर कृषि संपत्ति को बिना भूमि बदलाव के रिहायश के लिए बेचा नहीं जा सकता. ज्यादातर भूमि मालिक जमीन बदलाव के कानूनी झंझटों से बचने के लिए जीपीए के जरिए भूमि बेच देते हैं. 
 
इसके अलावा अन्य कई कानूनी प्रतिबंध हैं जो जीपीए के जरिए ग्राहकों को प्रॉपर्टी बेचने के लिए उकसाते हैं. ज्यादातर हाउसिंग स्कीमों (डीडीए और MHADA आदि) , जहां यूनिट्स लीज-होल्ड बेसिस पर अलॉट होती हैं, में भी परियोजना पूरी होने की अवधि होती है, जिससे पहले आवंटी किसी दूसरी पार्टी को प्रॉपर्टी नहीं बेच सकते. इस प्रोसेस से बचने के लिए ऐसी यूनिट्स को अकसर जीपीए के जरिए ट्रांफसर किया जाता है. जीपीए को रियल एस्टेट में पैसे इन्वेस्ट करने के जरिए के तौर पर भी देखा जाता है. कुछ मामलों में परिवार के लोग जीपीए के जरिए भी प्रॉपर्टी अधिकार दे देते हैं. कई मामलों में भोले-भाले घर खरीददार संकर्षण में शामिल अवैधता को समझे बिना धोखाधड़ी का शिकार होकर प्रॉपर्टी में निवेश कर बैठते हैं.  
 
2011 का सुप्रीम कोर्ट का आदेश: उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था, ''किसी अचल संपत्ति में हित, टाइटल या अधिकार पावर अटॉर्नी के जरिए ट्रांफसर नहीं किए जा सकते.'' कोर्ट ने म्युनिसिपल संस्थाओं को इन दस्तावेजों के आधार पर प्रॉपर्टी रजिस्टर नहीं करने का हुक्म दिया था. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जीपीए के जरिए असली लेनदेन वैध माने जाएंगे. 
 
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, ''कोई चीज प्रभावित पार्टियों को कन्वेयंस डीड को अपने टाइटल को पूरा करने से नहीं रोक सकती. ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट के सेक्शन 53ए के तहत इन लेनदेन का इस्तेमाल खास प्रदर्शन पाने या कब्जे से बचाव के लिए भी किया जा सकता है. इस आदेश के बाद राज्यों ने जीपीए के जरिए बेची जाने वाली प्रॉपर्टी के रजिस्ट्रेशन को बैन कर दिया. 
 
रहेजा डिवेलपर्स के नवीन रहेजा ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कहा, ''कोर्ट का फैसला कुछ हद तक रियल एस्टेट में काला धन पर रोक लगाने में मदद करेगा, जहां टाइटल्स में बदलाव किया जाता है.'' इसके अलावा, कई प्रॉपर्टी ट्रांजेक्शंस, जहां कीमतों को राउंड ऑफ कर दिया जाता है, वे प्रभावित होंगी." साल 2012 में ऐसी प्रॉपर्टीज के रजिस्ट्रेशन पर बैन लगाने के बाद, दिल्ली सरकार ने पत्नी/पति, बेटा, बेटी, भाई, बहन, अन्य रिश्तेदार व किसी अन्य विश्वासपात्र के पक्ष में रजिस्ट्रेशन को मंजूरी दे दी थी. 
 
अगर जीपीए के जरिए आप प्रॉपर्टी खरीदते हैं?
आपके 'कब्जे' में प्रॉपर्टी होगी लेकिन बिना बैनामे के आप उसके कानूनी हकदार नहीं माने जाएंगे. क्लियर प्रॉपर्टी टाइटल के बिना भविष्य में आप प्रॉपर्टी नहीं बेच सकते. हां जीपीए के जरिए ऐसा किया जा सकता है, जो गैर कानूनी है. 
 
क्या होगा अगर आप जीपीए के जरिए प्रॉपर्टी खरीदने पर विचार करते हैं?
ऊपर बताए गए मुद्दों के अलावा, आपको बैंक से वित्तीय मदद मिलना भी नामुमकिन हो जाएगा. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के एक बैंकिंग एग्जीक्युटिव ने कहा, "सामान्य तौर पर, बैंक जीपीए के जरिए किए गए प्रॉपर्टी ट्रांजेक्शन पर लोन नहीं देते. इसके लिए क्लियर प्रॉपर्टी टाइटल्स और सबसे पहली प्राथमिकता होती है.'' 
 
प्रॉपर्टी मामलों में जीपीए के जरिए आप कौन कौन से अधिकार दे सकते हैं?
जीपीए के जरिए, आप अपना घर संभालने, किराए पर दी गई संपत्तियों को मैनेज करने, बिल भरने और होम लोन से जुड़ी ट्रांजेक्शन करने के लिए किसी को प्रतिनिधि नियुक्त कर सकते हैं. आप किसी अटॉर्नी को जीपीए के जरिए प्रॉपर्टी रजिस्टर करने का जिम्मा भी दे सकते हैं. 

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