FCN24News/कोरोना वैक्सीन के बारे में विभिन्न कंपनियां अलग-अलग दावे कर रही हैं, लेकिन जानकार इसे अभी जल्दबाजी बताते हैं कि आनेवाली वैक्सीन लोगों को कोरोना से कितना सुरक्षित कर पाएगी। विशेषज्ञों के मुताबिक, कोरोना को लेकर जितनी वैक्सीन बनाई जा रही हैं, उन्हें अभी कई मापदंडों पर परखने की भी जरूरत है। इसीलिए कारगर कोरोना वैक्सीन के लिए लोगों को अभी लंबा इंतजार करना पड़ सकता है।



जे.जे. अस्पताल के डॉक्टर दिनेश धोड़ी, जिनकी देख-रेख में देसी वैक्सीन 'को-वैक्सीन' का ट्रायल हो रहा है, का कहना है, 'अभी यह नहीं कहा जा सकता कि वायरस से लड़ने के लिए कौन सी एंटीबॉडी बनती है और वह कितने दिनों तक शरीर में रहती है और इस वैक्सीन की डोज के बाद कोरोना होगा या नहीं।इस अध्ययन में काफी समय लग सकता है।'


नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ एपिडेमोलॉजी (चेन्नै) के पूर्व निदेशक और कोविशील्ड वैक्सीन बना रहे सीरम इंस्टिट्यूट में मेडिकल अफसर रह चुके डॉ. मोहन गुप्ते ने कहा, 'पूरे देश में 1600 लोगों पर और इंग्लैंड, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका में 40 हजार लोगों पर कोविशील्ड वैक्सीन का ट्रायल हो रहा है। विदेश में दूसरे और तीसरे चरण के ट्रायल की रिपोर्ट आना बाकी है।'

संक्रामक रोग विशेषज्ञ और कोविड टास्क फोर्स के सदस्य ओम श्रीवास्तव ने बताया, 'अभी ये अध्ययन बाकी हैं कि वैक्सीन इम्यून सिस्टम को मृत वायरस से निपटने के लिए कितना मजबूत बनाती है और एंटीबॉडी कोरोना के कौन से प्रोटीन स्ट्रक्चर को नष्ट करती है और वैक्सीन का डोज किसे कितनी मात्रा में देना है।'

इंडियन मेडिकल काउंसिल से जुड़े डॉ. प्रागजी एस. वजा ने बताया, 'वर्षों पहले सार्स बीमारी पर किए गए अध्ययन का फायदा कोविड-19 के खिलाफ वैक्सीन बनाने में मिला है, क्योंकि कोविड-19 सार्स बीमारी का ही हिस्सा है। हालांकि इसकी गारंटी कोई भी नहीं दे सकता कि यह वैक्सीन कितनी कारगर होगी।' उन्होंने कहा, 'हेपेटाइटिस, पोलियो वैक्सीन लेने के बाद शरीर में बने प्रोटेक्शन के बारे में को-रिलेट ऑफ प्रोटेक्शन टेस्ट से पता किया जा सकता है, लेकिन सार्स कोरोना को लेकर ऐसा अभी कोई टेस्ट नहीं आया है।' उन्होंने कहा कि जिन लोगों को ट्रायल में वैक्सीन दी गई है, उनका फॉलोअप करने में एक साल का समय भी लग सकता है।'

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