संवाददाता, हरकुलिस पांडेय
FCN24News,शिर्डी के सांई बाबा के चमत्कारों और उनके अनुयायियों द्वारा उनकी अनुकंपा के कई किस्से हम आए-दिन सुनते रहते हैं. महान संत और ईश्वर के अवतार सांई बाबा के जन्म और उनके धर्म को लेकर कई विरोधाभास प्रचलित हैं. सांई बाबा ने कभी अपने धर्म को प्रचारित नहीं किया और सभी धर्मों को समान आदर देते हुए वह ताउम्र ‘सबका मालिक एक’ ही जपते रहे और दुनिया को यही समझाते रहे. कुछ लोगों का मानना है कि सांई बाबा का जन्म महाराष्ट्र के पाथरी ग्राम में 28 सितंबर, 1835 को हुआ, जबकि कुछ के अनुसार उनका जन्म 27 सितंबर 1838 को तत्कालीन आंध्रप्रदेश के पाथरी गांव में हुआ था और उनकी मृत्यु 28 सितंबर, 1918 को शिर्डी में हुई.
सांई बाबा से जुड़े अधिकांश दस्तावेजों के अनुसार सांई को पहली बार 1854 में शिर्डी में देखा गया था, उस समय उनकी उम्र 16 वर्ष रही होगी. सत्य सांई बाबा जिन्हें दुनिया सांई बाबा के अवतार के रूप में जानती है, का कहना था कि सांई का जन्म 27 सितंबर, 1830 को पाथरी, महाराष्ट्र में हुआ था और शिर्डी में प्रवेश के समय उनकी उम्र 23 और 25 के बीच रही होगी. अगर सांई की जीवन यात्रा पर विचार करें तो बहुत हद तक सत्य सांई बाबा का यह अनुमान सटीक बैठता है.
बाबा धुनी रमाते थे और धुनी सिर्फ शैव या नाथपंथी धर्म के लोग ही जलाते हैं. धुनी तो सिर्फ शैव और नाथपंथी संत ही जलाते हैं.
बाबा ने अपने कानों में छेद करवाए हुए थे जो सिर्फ नाथपंथी करवाते हैं.
सांई बाबा हर सप्ताह विट्ठल (श्रीकृष्ण) के नाम पर कीर्तन का आयोजन करते थे.
सांई बाबा माथे पर चंदन का टीका लगाते थे.
सांई, फारसी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है ‘संत’ और उस दौर में मुसलमान संन्यासियों के लिए यही शब्द प्रयोग किया जाता था. उनकी वेषभूषा देखकर शिर्डी के एक पुजारी को वह मुसलमान लगे और उसने उन्हें सांई कहकर पुकारा था.
सांई सच्चरित के अनुसार सांई ने कभी सबका मालिक एक जैसी बात नहीं की जबकि वो तो ‘अल्लाह मालिक एक’ बोलते थे. कुछ लोगों ने उन्हें हिन्दू संत ठहराने के लिए सबका मालिक एक जैसी बात कही थी
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